छविलाल काेपिला
सैयर गुलाबि ‘टन्ना’ बिछाके
क्रान्टिक हरियर चडरि ओरहके
ओ सटरंग सपनक सिरहन ढैके
मै अब्बे सनचसे निडाइटुँ ।
का करे कि
अब्बे मुस्केइटि बटाँ
पसिनक बुँडा–बुँडा सिंचके चमेलि
ओ अँग्नाभर बास फैलाइटाँ बेलक फुला ।
मै यि माटि
ओ यि प्रकृटिहे साँखि ढैक
कहे सेकम
आब महिँहे कोइ, कौनो डिन फेन
लाजके पहुरा नै पठाइ ।
का करे कि,
जब, पसिना चिरार फाटल बन्जरमाटि
बाँझ कोरके उर्बर बनाइ
ओ, ओइरा मिलाके फरि–फुलि पस्नक सोन असक डाना
ठिक, टब्बहें
अप्नहें लजाइ लाज
ओ घुमके जाइ, मोर घरक डुँरहि परसे ।
जब पस्ना चुहके
स्वाभिमानके हँसिया, हर ओ कोड्रामे
कब्बो फेन किट नै लागि
बेनसे, काम करट करट बनि सोट्टैल ओ घोट्टैल ।
जब मोर पस्ना
समयक बर्डा नाठके अभाव जोटजाइ
ओ किल्कोरके टनावके झ्यालकुस फँकाजाइ
टब फोंहिक एक्ठो मैगर सिर्जना लौटि डलबाडर असक
ठिक टब्बहें
भरोसक अविचलिट पर्वटवा ढेंग हुइटि रहि
फुलि कछारभर बैसके फुला
ओ फैलजाइ जहोंर–टहोंर पस्नक बास ।
पियासक मारे टरपटि बा मरुभूमिहस बगरवा
ओकर उँप्पर खेल्टि बा टाटुल खर–घाम
उहिहे टिह्वइटि बटाँ आँढि ओ बयाल
ओ, ओक्रे पँज्रेसे सडा नेंग्टि बा सिठमारके
चुपचाप चुपचाप लडिया फेन ।
मै सोंचटँु
कइसिक सिठमारके बैठल हुइ, लडिया हो यि बगरवा ?
मै अब्बे सम्झटुँ
पस्नक एक बुँडा नेउँटा पठाके
बलैना बा एक सन्झा बगरवक घर लडियइहे ।
जब, ओजरिया उठि टे
लगाके सिटके मोटिअसक सपनक बिया
महिँहे फुलैना मन बा
पस्नक फुला ओ फुलक मुस्कान
ओ सक्हुन बँट्ना मन बा पस्नक बास ।